Home » » Pujari Ke Sath Sex

Pujari Ke Sath Sex


उस समय की बात है जब मेरी उम्र सिर्फ़ 18 साल थी। मेरे घर से कुछ ही दूरी पर एक छोटा सा मन्दिर था। मन्दिर में नया पुजारी आया हुआ था। वह अपने को बाल ब्रह्मचारी कहता था, करीब 40 साल का था। देखने में सांवला मगर शरीर कसा हुआ था।
मैं हफ़्ते में 3-4 बार मन्दिर जाया करती थी। मन्दिर में वह मुझे घूर घूर कर सेक्सी निगाह से देखा करता था। मुझे उसके नियत पर शक होने लगा था। मगर मन ही मन मुझे अच्छा लगता था।
एक दिन मैं बहुत सुबह ही मन्दिर पहुँच गई थी। वहाँ पहुँचने पर देखा कि पुजारी नहा रहा है।
वह मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुरा दिया और रुकने के लिये इशारा किया। वह खुले में नल के नीचे नहा रहा था। उसका कस्सा हुआ बदन बहुत अच्छा लग रहा था। उसने पतली सफ़ेद धोती पहन रखी थी। मैं तिरछी नज़र से उसे देख रही थी, शायद उसे पता चल गया था कि मैं उसे देख रही हूँ।
गीली धोती से उसका लण्ड साफ़ दिख रहा था, काफ़ी मोटा और लम्बा था। इतना मोटा लण्ड मैंने पहले कभी नहीं देखा था। वह अब कपड़े बदलने लगा था। कपड़े बदल कर वह मेरे पास आ गया और बोला- चलो, अब तुम्हें पूजा कराते हैं।
पूजा के बाद उसने धीरे से कहा- तुम बहुत सुन्दर हो।
मैंने कहा- पुजारी जी, आप तो बाल ब्रह्मचारी हो, आपको ऐसी बात शोभा नहीं देती।
तब उसने कहने लगा- हाँ, यह सब तो ठीक है मगर मेरा भी तो मन ही है, कभी कभी बहक जाता है। अच्छा, यह बताओ कि जब मैं नहा रहा था तो तुम क्या देख रही थी?
मैं थोड़ी शरमा गई मगर हिम्मत करके बोली- कुछ नहीं पुजारीजी, मैं आपका शरीर देख रही थी और कुछ नहीं।
पुजारी मुस्कुरा कर बोला- और कुछ नहीं? तो बोलो मेरा शरीर और वो कैसा लगा?
मैंने कहा- पुजारीजी, आपका शरीर और वो बहुत भयंकर है, मुझे आपसे डर लगता है। आप तो बड़े खिलाड़ी लगते हैं।
इस पर वो बोला- अरे चलो, थोड़ी बातें करते हैं, अभी कोई नहीं है।
और हम दोनों बैठ गये।
पुजारीजी मेरे स्तन को देख कर बोले- ये तो काफ़ी बड़े हो गए हैं। मन करता है कि मसल दूँ।
तब मैंने कहा- लगता है आप बाल ब्रह्मचारी के नाम पर बहुत मजे कर चुके हो। आप तो बहुत खराब आदमी लगते हो। मैं आपके बारे में सबको बता दूँगी।
पुजारी कुछ डर गया और कहने लगा- प्लीज ऐसा मत करना। मैं तुम्हें कुछ नही करुंगा। प्लीज अपना नाम तो बता दो।
मैंने कहा- मुझे लोग रीता कहते हैं। अच्छा ठीक है, नहीं बताऊँगी। लेकिन मैं कल शाम में फ़िर आऊँगी और आपसे और बातें करुंगी।
और मैं मु्स्कुरा कर चल दी।
दूसरे दिन करीब 7 बजे शाम को मैं मन्दिर गई तो देखा कि पुजारीजी अकेले बैठे हुए हैं। मैंने पूछा- अरे पुजारीजी आज कुछ चिन्तित लग रहे हो?
उस समय अन्धेरा हो चुका था, मैने उनके गाल पकड़ कर दबा दिए। तब जाकर वे मुस्कुराए और मेरा हाथ पकड़ कर कहने लगे- अरे रीता, मैं तो डर गया था कि तुम मुझसे गुस्साई हुई हो। पुजारीजी मेरा हाथ पकड़ कर कमरे में ले गये और कहने लगे- आज यहाँ कोई नहीं आने वाला है।
कमरे में बहुत धीमी रोशनी थी। पुजारी जी अपनी बनियान निकाल दी। अब मैं उनकी छाती पर हाथ रख कर सहलाने लगी। उन्होंने मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया। उनका लिंग पूरी तरह तन चुका था। उनका लिंग पकड़ते ही मैं डर गई- अरे बाबा ! यह तो घोड़े के लण्ड जैसा है। आप पहले यह बताओ कि आप कितनियों के साथ यह कर चुके हो?
पुजारीजी बोले- अरे रीता, बस तुम दूसरी हो। इससे पहले एक 40 साल की औरत को चोदा था। वह विधवा थी।
मैंने कहा- पुजारी जी, मैं तो कुंवारी हूँ, मेरी तो सील भी नहीं टूटी है, मैं तो मर जाऊँगी। तुम्हारा लण्ड बहुत बड़ा है।
पुजारीजी ढाढस देते हुए मुझे चूमने लगे और मेरी चोली के बटन खोल कर मेरे स्तन चूसने लगे। उसके बाद मेरा लहंगा भी उतार दिया। अब मैं पूरी तरह नंगी हो चुकी थी।
पुजारीजी मेरे ऊपर चढ़ कर अपनी लिंग को मेरे मुख में डालने लगे और खुद मेरी बुर चाटने लगे। मेरी बुर को उंगली से खोल कर अन्दर अपनी जीभ डाल कर चाट रहे थे।
अब मुझे मजा आने लगा था। इधर पुजारीजी ने अपना लण्ड मेरे मुँह में अन्दर तक कर दिया था, मुझे भी उनका लण्ड चूसने में मजा आ रहा था।
अब वे जोर जोर से चाटने लगे थे और अपनी दोनों जान्घो से मेरे गर्दन को दबा कर अपने लण्ड को मेरे कंठ तक ठेल चुके थे।
उसी समय मुझे नमकीन सा स्वाद आने लगा। मैंने उनको हटाना चाहा मगर सफ़ल नहीं हो पाई।
कुछ देर के बाद वे उतर गये और सॉरी बोलने लगे- रीता, मुझे माफ़ कर दो, मैं नहीं सह पाया। मैं दिखावटी गुस्सा करने लगी। मैं घर जाने के लिये कहने लगी। पुजारी जी मेरे स्तन सहलाने लगे और कुछ देर और रुकने के लिये कहने लगे। बिना कुछ बोले मैं लेटी रही।
करीब 10 मिनट के बाद पुजारीजी ने मेरे हाथ में अपना लण्ड पकड़ा दिया।
फ़िर से उनका लण्ड खड़ा देख मुझे आश्चर्य होने लगा, मैंने कहा- पुजारीजी, अब जाने दीजिए, आपका तो गिर ही गया न, मैं आपके लण्ड को नहीं झेल पाऊँगी।
तब पुजारीजी बोले- अरे रीता, असली मज़ा लिये बिना कैसे चली जाओगी। मैं बहुत धीरे से अन्दर करुंगा, अगर अधिक दुखे तो बोल देना, मैं रुक जाऊँगा।
उसके बाद मेरी दोनों जांघों के बीच में बैठ कर अपने लण्ड से मेरी बुर को सहलाने लगे, भगनासा को लिंग के मुण्ड से रगड़ने लगे। मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी थी, मैंने उनके लण्ड को पकड़ अपनी आँखें मूंद ली।
वे मेरी दोनों टांगों को अपने दोनों कन्धों पर रख कर अपने टनटनाए हुए 8 इन्च के लण्ड को मेरी बुर के अन्दर धकलने लगे। 2 इन्च भी नहीं गया होगा कि मैं रुकने को बोलने लगी। मैंने अपने हाथ से उनका लण्ड पकड़ लिया और कहने लगा- पुजारी जी, बहुत दुख़ रहा है जरा धीरे से कीजिए, बहुत मोटा है आपका, मेरी फ़ट जाएगी।
तब कुछ रुक कर फ़िर अन्दर ठेलने लगे और मेरे होंठ चूमने लगे। वे मुझे सान्त्वना दे रहे थे, कह रहे थे- मेरी रानी आज तुझे पूरी औरत बनाना है। तुम्हारी बुर का छिद्र बहुत संकरा है, आज तुम्हारी सील भी तोड़नी है इसलिए आज तो सहना ही पड़ेगा, लेकिन अन्दर जाते ही मज़ा आ जाएगा।
"अच्छा बाबा, ठीक है, मगर बहुत आहिस्ते आहिस्ते कीजिए !" मैंने कहा।
उसके बाद कुछ और अन्दर करके धीरे से धक्का देने लगे और मेरे स्तन को चूसने लगे।
मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी, मैंने अपने हाथ लण्ड से हटा कर उनके कमर पर रख दिए और अन्दर करने का इशारा किया। वे रूमाल मेरे मुख पर रख कर बोले- रानी मत रोना, बस एक बार सह जाना।
मुझे डर भी लग रहा था और पूरा लण्ड भी लेना चाहती थी। मैंने अपनी आँखें बन्द कर ली। बस उसी वक्त जोर का दर्द हुआ और मैं जोर से चिल्ला उठी- अरे, मैं मर गई ! जल्दी निकालो, मेरी फ़ट गई !
मेरी आँखों से आँसू आ गये लेकिन वे पूरी तरह से मुझे जकड़े हुए थे और धीरे से धक्के मारने लगे।
कुछ देर के बाद दर्द कम हुआ तो मैं बोली- अरे बाप रे ! दर्द के मारे मेरी जान ही निकल गई।
पुजारीजी कहने लगे- अब कैसा लग रहा है? मज़ा आ रहा है न?
मै कुछ न बोली और उनकी कमर पकड़े रही। कुछ देर के बाद पुजारी ने बाहर निकाल कर अपने लण्ड पर निरोध लगाया और फ़िर से मेरे बुर में अपना लण्ड डाल दिया। इस बार कम दुखा और मैं चुप रही।
अब वे फ़िर से धक्का देने लगे और मैं दर्द के साथ चुदाई का मज़ा लेने लगी। चुदाई खत्म होने के बाद देखा तो बिस्तर पर खून ही खून था, मेरी चूत की झिल्ली फ़ट चुकी थी।
मैं पुजारी जी से कहने लगी- आपका लण्ड तो बहुत ही खतरनाक है, मेरी तो फ़ाड ही दी आपने, अब मैं अपनी पति को क्या दूंगी?
इस पर वे बोले- अरे मैंने तुम्हारे पति का काम आसान कर दिया है। तुम्हारी बुर बहुत ही तंग है, मेरा भी लण्ड छिल गया है।
देखा तो पुजारी का लण्ड भी पूरी तरह लहुलुहान हो गया था।
इसके बाद मैंने अपने कपड़े पहने और घर आ गई।
इसके बाद मैं पुजारी से कभी नहीं मिल पाई और कुछ ही दिनों के बाद मेरी शादी हो गई।
सुहागरात में तो मुझे डर ही लग रहा था कि कहीं उन्हें शंका न हो जाए मगर इनका लण्ड तो और भी बड़ा था। जब इन्होंने अपना लण्ड अन्दर करना चाहा तो मैंने अपनी जांघें भींच ली ताकि इन्हें मेरी बुर एकदम कसी लगे और हुआ भी ऐसा ही।
वे बोल रहे थे- तुम्हारी तो बहुत ही कसी हुई है।
और मैं दर्द होने का बहाना कर रही थी।

बाद में देखा तो उनका भी लण्ड छिल चुका था मगर मेरी बुर से खून नहीं आया था। उस रात मेरे पति ने मुझे तीन बार चोदा।

1 comments:

  1. nice story .muchhe bhi choot dilwao yaar kisi ki.

    ReplyDelete

Like us on Facebook
Follow us on Twitter
Recommend us on Google Plus
Subscribe me on RSS